SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ जैन पूजा पाठ मग्रह वाणवितरजोइसियकप्पवासियत्ति चउविहा देवाः सपरिवारा दिवेणगंधेण दिव्वेण पुफ्फेण दिव्वेण धुन्वेण दिन्वेण चुण्णेण दिव्वेण वासेण दिन्वेण राणेण णिच्चकालं अच्चंति पुज्जंति वंदंति णमस्संति । अहमवि इह सन्तो तत्थसंताइ णिच्चकालं अच्चेमि पुज्जेमि चन्दामि णमस्सामि। दुक्खक्खओ कम्मक्खओ बोहिलाहो सुगइगमणं समाहिमरणं जिणगुणसम्पत्ती होउ मज्झं ।। अथ पौलिक-माध्याह्निक-आपराह्निक देववंदनायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थ भावपूजावंदनास्तवससेतं श्रीपंचमहागुरुभक्ति कायोत्सर्ग करोम्यहम् । इत्याशीर्वाद पुष्पाजलि क्षिपेत् । ताव कायं पावकम्मं दुचरियं वोस्लरामि । णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णलो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहणं । (यहाँ पर नौ बार णमोकार मत्र जपना चाहिये) आत्मशक्ति - जो कुछ है सो आत्मा में, यदि वहा नहीं तो कहीं नहीं। - आत्मा अनन्त ज्ञान का पात्र है और अनन्त सुख का धारी है परन्तु हम अपनी अज्ञानतावश दुर्दशा के पात्र बन रहे हैं। - आत्मा ही आत्मा का गुरू है और आत्मा ही उसका शत्रु है । - अन्तरग की बलवता हो श्रेयोमार्ग की जननी है। -'वर्णी वाणी' से
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy