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जैन पूजा पाठ रामद
जल फल आठों दर्व, अरघ कर प्रीति थरी है। गणधर इन्द्रनहूते, थति पूरी न करी है। 'धानत' सेवक जानके (हो) जगत लेह निकार ।। सी० विध मानगिनिनी यो योऽनर्षपदप्राप्तये अ० ॥ ९ ॥
जयमाला सोरठा-ज्ञान-सुधा-कर चंद, भविक-खेतहित मेघ हो। भ्रम-तम भान अमंद, तीर्थकर वीसों नमों ।।
चौपाई १६ माना। मीमंधर सीमंधर म्वामी, जुगमन्धर जुगमन्धर नामी। बाहुबाहु जिन जगजन तारे, करम सुवाह वाहुवल दारे ॥१॥ जान सुजातं केवलज्ञान, म्वयंप्रभू प्रभु म्बय प्रधानं । अपमानन ऋषभानन ढोप, अनन्त चीरज वीरज कोपं ॥२॥ मांगेप्रभ सौरीगुणमालं, मुगुण विशाल विशाल दयालं। वस्त्रधार भव गिरिवज्जर है, चन्द्रानन चन्द्रानन पर हैं।।३।। भद्रबाहु भद्रनिके करता, श्रीमुजंग भुजंगम भरता। ईश्वर मबके ईश्वर छाज, नेमिप्रभु जस नेमि विराजै ।।४।। वोरसेन वीरं जगजान, महाभद्र महाभद्र वखाने । नमो जमोधर जमघरकारी, नमों अजितवीरज क्लधारी ॥५॥ धनुप पांचसै काय विराज, आयु कोडि पूरव सब छाजे । समवशरण शोभित जिनराजा, भवजल तारन तरन जहाजा ॥६॥