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________________ जैन पूजा पाठ संग्रह ३९ बीस तीर्थकर पूजा-भाषा दीप अढ़ाई मेरु पन, अब तीर्थंकर बीस । तिन सबकी पूजा करूँ, मन वच तन धरि शीस ॥ ही विद्यमानविंशतितीर्थकरा ! अत्र अवतर अवतर सवौषट् आदाननम् । ॐ हीं विद्यमानविंशतितीर्थकरा ! अब तिष्ठत तिष्ठतठ ४ स्थापन । ही विद्यमानविंशतितीर्थकरा. ! अत्र मम सन्निहितो भवतभवत वषट् सन्निधिकरणम् । इन्द्र-फणींद्र-नरेन्द्र-वंद्य, पद निर्मल धारी। शोभनीक संसार, सारगुण हैं अविकारी ॥ क्षोरोदधि सम नीरसों (हो), पूजौं तृषा निवार । सीमंधर जिन आदि दे, बीस विदेह मंझार ॥ श्रीजिनराज हो, भवतारण तरण जिहाज ॥१॥ ॐ'ही विद्यमानविंशतितीर्थकरेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल० ॥ १॥ तीन लोकके जीव, पाप आताप सताये। तिनकों साता दाता, शीतल वचन सुहाये ॥ बावन चंदन लौं जजू (हो) भ्रमन तपन निरवार ॥ती. ॐ हीं विद्यमानविंशतितीर्थकरेभ्यो ससारतापविनाशनाय चन्दन० ॥ २॥ यह संसार अपार महासागर जिनस्वामी । तातें तारे बड़ी भक्ति-नौका जगनामी ॥ तंदुल अमल सुगंधसों (हो) पूजों तुम गुणसार ॥ लीक ही विद्यमानविंशतितीर्थ करेभ्योऽक्षयपदप्राप्तये अक्षतान्० ॥ ३ ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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