SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूजापाठ ३३ देव-शास्त्र-गुरु- पूजा युगल किशोर जैन 'गुगल' विरचित # स्थापना केवल रवि किरणोसे जिसका सम्पूर्ण प्रकाशित है अन्तर । उस श्री जिनवाणी में होता. तत्वों का सुन्दरतम दर्शन ॥ सदर्शन-बोध-चरण-पथ पर, अविरल जो बढ़ते हैं मुनिगण । उनदेव. परम आगमगुरुको शत-शतवन्दन शत-शतवंदन ॥ · NA WAT ATT BÚne vera i Ama frame याप 3- HENTIE! इन्द्रिय के भोग मधुर विप सम. लावण्यमयी कञ्चन काया । यह सब कुछ जड़की कोड़ा है, में अब तक जान नहीं पाया ॥ मैं भूल स्वयं के वैभव को, पर ममता में अटकाया हूं । अब निर्मल सम्यक-नीर लिये, मिध्या मल धोने आया हूं ॥ ग्रामीमा निलामीति नाटा ॥ १ ॥ जड़ चेननकी सब परिणति प्रभु । अपने अपनेमें होती है। अनुकूल कहें प्रतिकूल कह. यह झूठी मन को वृत्ति है !! प्रतिकूल संयोगों में क्रोधित होकर संसार बढ़ाया है । सन्तप्त हृदय प्रभु ! चंदन सम, शीतलता पाने आया है । ॐ हो रयोजनाय चन्दन निर्वपामीति स्वाहा ॥ २ ॥ 2
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy