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________________ है प्रभु जाप को दिव्य-ध्वनि जव समवशरण में खिरती है, तब समी मोक्ष प्रेमी जोवो का अनायास मन हरती है, परिसमन जाप को धाणो का खुद हो जाता हर बौती में, जो भी बाराी जाफर सुनता है समवशरण को टोली में ॥ ३५ ॥ जन कमलो सो कान्तिदान चरणो की शोभा प्यारी है, नख की किरणो का तेज स्वर्ण जैसा लगता मनहारी है, ऐसे मनहारी चरणो को जिस जगह प्रभुजी धरते हैं, उस जगह देव उनके नीचे कमलो की रचना करते हैं ॥ ३६॥ है प्री जिनेन्द्र तेरी विभूति सचमुच ही अतिशयकारी है, धर्मोपदेश की समा जाप जैसी न और ने धारी है, जैसे सूरज का उजियाला सारा नम्बर चमकाता है, वैसे नक्षत्र अनेको पर सूरज को एक न पाता है ॥ ३७॥ मदमस्त कली के गण्डस्थल पर जब मौर मंडराते हैं, उस समय क्रोध से हाथी के दोउ नयन लाल हो जाते हैं, इतने विकराल रूपवाला हायो जय सन्मुख जाता है, ऐसे सङ्कट के समय जाप का भक्त नही घबराता है ।। ३ ।। जो सिंह मदान्ध हाथियो के सिर को विदीर्ण कर देता है, शोणित से सथपथ गज मुक्ता पृथ्वी को पहिना देता है, ऐसा क्रूर धनराज शत्रुता छोड़ मित्रता धरता है, जव उसके पजे मे भगवन कोई मक्त जाप का पड़ता है ।। ३६ ।। हे प्रभो प्रलय का पवन जिसे धू-धू कर के धधकाता हो, ऐसी विकराल अग्नि ज्वाला जो क्षण मै नाश कराती हो, उसको तेरे वचनामृत जल पल भर मै शान्ति प्रदान करे, जो भक्तिभाव कीर्तन रूपी तेरा पवित्र जल पान करे ॥ ४०॥ है प्रभु नागदमनी से ज्यो सपों की एक न चल पाती, विषधर की डंसने की सारी शक्ति क्षण में क्षय हो जाती, बस उसी तरह प्रद्धा से जो तेरा गुण गान किया करते, वह डरते नही क्रुद्ध काले नागो पर कमी पैर धरते ।। ४१ ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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