SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 408
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन पूजा पाठ मप्रह जिमने तुमसे दिलदर्द कहा, तिसका तुमने दुःख हाना है। अघ छोटा मोटा नाशि तुरत, सुख दिया तिन्हें मनमाना है । पावकसों शीतल नीर किया, और चीर बढ़ा असमाना है। भोजन था जिसके पास नहीं, सो किया कुवेर समाना है ।। श्री. चिंतामण पारम कल्पतरु, सुखदायक ये परधाना है। तब दासन के सब दास यही, हमरे मन में ठहराना है।। तुम भक्तन को सुरइन्द्रपदी, फिर चक्रवर्तिपद पाना है। क्या बात कहौं विस्तार बड़े, वे पा मुक्ति ठिकाना है ॥ श्री. गति चार चौरासी लाख विष, चिन्मूरत मेरा भटका है। हो दीनबन्धु करुणा-निधान, अवलौं न मिटा वह खटका है । जव जोग मिला शिव साधनका, तब विधन कर्मने हटका है। अब विघन हमारे दर सरो, सुख देहु निराकुल घटका है। श्री. गजग्राहग्रसित उद्धार लिया, ज्यों अजन तस्कर तारा है। ज्यों सागर भोपदरूप किया, मैना का संझट टारा है ।। ज्यों शूलीते सिंहासन, और वेडी को काट विडारा है। त्यों मेरा संकट दूर करो, प्रभु मोकू आस तुम्हारा है ।। श्री. ज्यों फाटक टेकत पाय खुला, और साँप सुमन कर डारा है। ज्यों खड्ग कुसुमका माल किया, वालकका जहर उतारा है ।। ज्यों सेठ विपति चकचरपूर, घर लक्ष्मी सुख विस्तारा है। त्यों मेरा संकट दूर करो, प्रभु मोकू आस तुम्हारा है ।। श्री. यद्यपि तुमरे रागादि नहीं, यह सत्य सर्वथा जाना है। चिन्मूरति आप अनन्तगुणी, नित शुद्ध दशा शिव थाना है ।। तहपि भक्तन की पीर हरो, सुख देत तिन्हें जु सुहाना है।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy