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________________ जैन पूजा पाठ सग्रह ३८५ काय त्यजन मय होय काय सबको दुःखदाई ॥ पूरव दक्षिण नम दिशा पश्चिम उत्तर मैं । जिनगृह वन्दन करूँ हरूँ भवतापतिमिर मैं ॥२६॥ शिरोनती मैं करूँ नमूं मस्तक कर धरिकें। आवर्तादिक क्रिया करूँ मन वच मद हरिक॥ । तीनलोक जिनभवन मांहि जिन हैं जु अकृत्रिम । कृत्रिम हैं द्वय अर्ब द्वीप नाही बन्दों जिम ॥२७॥ आठकोडि परि छप्पन लाख जु सहस सत्यागें । च्यारि शतक पर असीएक जिनमन्दिर जाणू॥ व्यन्तर ज्योतिष सांहिं संख्य रहिते जिनमन्दिर । ते सव वन्दन करूं हरहुँ मम पाप संघकर ॥२८॥ सामायिक सम नाहि और कौऊ वैर मिटायक। सामायिक सम नाहिं और कोऊ मैत्रीदायक ॥ श्रावक अणुव्रत आदि अन्त सप्तम गुणथानक । यह आवश्यक किये होय निश्चय दुःखहानक ॥२६॥ जे भवि आतमकाज-करण उद्यम के धारी। ते सब काज विहाय करो सामायिक सारी॥ राग रोष मदमोहक्रोध लोभादिक जे सव। बुध 'महाचन्द्र विलाय जाय ता कीज्यो अब ॥३०॥ इति सामायिक पाठ समाप्त ।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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