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________________ - तिनका नहिं जतन कराया, गलियारे धृप डगया । पुनि इन्य कमापन काजै, बहु आरंभ हिसा साजै। किये अप निमनावश भार्ग, फरुना नहिं रंच विचारी ।। इत्याटिक पाप अनंता, हम फीने श्री भगवंता। मंनि चिरकाल उपाई. वानी ते कहिय न जाई ।। ताफीजु उदय अब आयो, नानाविध मोहि सतायो । फल सुंजत जिय दुख पा. पर्चन फैले करि गावै ।। तुम जानन केवलगानी, दुर दुर कगे शिवथानी । हम ना तुम शरण लही है. जिन तान्न निन्द मही है । जा गावपना एक हावे. मां भी दुखिया दुर खो। तुम नीन भुइनके स्वामी, दुरा मेटह अंतरजामी ।। द्रोपटिको चीर बदायों, मीनाप्रति कमल रचायो। अंजनसे किये अकामी, दुरस मेटो अंतरजामी ।। मेरे अवगुन न चितागे, प्रभु अपनो विरद सम्हारो। मर दोपदित करि म्वामी, दस मेटह अंतरजामी । डादिक पदवी नहिं चाहे. विषयनिमें नाहि लुभाऊँ। गगाद्रिक दोष हगंज, . परमानम निज-पद दीजै ॥ टोपहित जिनदेवजी, निजपट दीज्यो मोय । नव जीवनके मुख वह, आनँद मगल होय ॥ अनुभव माणिकपारसी, 'जोहरि' आप जिनन्द । पही वर माहि दीजिये, चरन शरन आनन्द ||
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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