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________________ ३६४ जैम पूजा पाठ सप्रह विषापहार स्तोत्र भाषा. दोहा - नमो नाभिनन्दन बली, तत्त्वप्रकाशनहार । तुर्यकाल की आदि में, भये प्रथम अवतार ।। रोला छन्द निज आतम में लीन ज्ञानकरि व्यापत सारे । जानत सव व्यापार संग नहिं कछु तिहारे । बहुत काल हो पुनि जरा न देह तिहारी । ऐसे पुरुष पुरान करहु रक्षा जु हमारी ॥ १ ॥ परकरिक जु अचिन्त्य भार जग को अतिभारो। सो एकाकी भयो वृषभ कीनों निसतारो॥ करि न सके जोगीन्द्र स्तवन मैं करिहों ताको । भानु प्रकाश न करै दीप तम हरे गुफा को ॥२॥ स्तवन करनको गर्व तज्यो शकी बहु ज्ञानी । में नहिं तजों कदापि स्वल्पज्ञानी शुभध्यानी ॥ अधिक अर्थको कहूँ यथा विधि बैठि झरोके ।। जालान्तर धरि अक्ष भूमिधर को जु विलोकै ॥ ३ ॥ सकल जगतकों देखत अर सबके तुम ज्ञायक । तुमकों देखत नाहि नाहि जानत सुखदायक ॥ हो किसाक तुम नाथ और कितनाक बखाने । लातै थुति नहि बनै अशक्ति भये सयानै ॥ ४॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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