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________________ २२ जैन पूजा पाठ संग्रह देव-शास्त्र-गुरु पूजा भाषा अलि छन्द | प्रथम देव अरहन्त सुश्रुत सिद्धान्त जू । गुरु निरयन्ध महन्त सुकतिपुरपंथ जू ॥ तीन रतन जग माहिं सो ये भवि ध्याइये । तिनकी भक्तिप्रसाद परमपद पाइये ॥ दोहा-पूजों पद अरहन्त के, पूजों गुरुपद सार | पूजों देवी सरस्वती, नितप्रति अष्ट प्रकार ॥ ॐ ह्रीं देवशास्त्रगुरुसमूह ! अत्र अवतर अवतर सर्वोौपट आह्वानन । ॐ ह्रीं देवशास्त्रगुरुसमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापन । 'ही देवशास्त्रगुरुसमूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । गीता छन्द । सुरपति उरगनरनाथ तिनकर, बंदनीक सुपदप्रभा । अति शोभनीक सुवरण उज्ज्वल, देखि छवि मोहित सभा ॥ वर नीर क्षीरसमुद्रघट भरि अग्र तसु बहुविधि नं अरहंत श्रुतसिद्धांत गुरु निरग्रन्थ नित पूजा रचूं | दोहा - मलिन वस्तु हरलेत सब, जल स्वभाव मलछीन जासों पूजों परमपद, देवशास्त्र गुरु तीन ॥१॥ ॐ ह्रीं देवशास्त्रगुरुसमूह जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १ ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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