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________________ अकृत्रिम चैत्यालय पूजा आठ कोड़ अरु छप्पन लाख, सहस सत्यानव चतुशतभाख। जोड़ इक्यासी जिनवर थान, तीन लोक आह्वान करान। हो त्रैलोक्य सम्बन्ध्यष्टकोटिपटपसाराक्षसप्तनपतिराहन चतु-शतेकाशीति अनिमजिनचत्वालपानि ! मम अपतर भयतर सवौषट् । भन तिष्ठत तिष्ठत 8 , अन नम सलिहितो भप भय पछ्। क्षीरोदधिनीरं उज्ज्वल क्षीर, छान सुचीर भरि मारी। अति मधुरलखावन,परमसु पावन तृपावुझावन गुण भारी) वसुकोटिसुछप्पन लाख सत्तानव,सहसचारशतइक्यासी। जिनगेह अकीर्तिम तिहॅजग भीतर पूजत पद ले अविनाशी। ओहीं तीन लोक सम्बन्धी आठ मोटि उप्पन लाख सत्यानवै हजार चार सौ इस्पासी अमिम जिन चैत्यालयेभ्यो जन्ममृत्युपिनागनाय जल निर्मपामीति रवाहा । मलयागिरि पावन,चन्दन वावन,ताप बुझावन धलि लीनो। धरि कनक कटोरी.द्वेकरजोरी तुमपद ओरी,चित दीनोविसुरु ही ससारतापविनाशनाय चन्दन निर्वपानीति रा ! वहुभांति अनोखे, तन्दुल चोखे, लखि निरदोखे, हम लीने। धरि कञ्चनथाली.तुम गुणमाली, पुँज विशालीकर दीवसु ही यसपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपानीति रवाला। शुभ पुष्प सुजाती है, वहुभांति, अलि लिपटाती लेय वरं । धरि कनकरकेवी,करगह लेबी,तुम पद जुगकी भेट घरं वसुल ॐही पानाविध्वशनाय पुष्प निर्यपाीति लाहा। खुरमाजु गिंदोडा, बरफी पेड़ा, घेवर मोदक भरि थारी। विधिपुर्वक कीने,घृतपय भीने,खण्ड में लीने,सुखकारी।वसु० *ही सुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्मपामीति स्वाहा ।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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