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________________ I प्रभ २४७ मानुष आयु धरै नर देही, इष्ट वियोग लहै दुःख तेही । धन संपत्तिको सदा भिखारी, प्रभुता मांहि पचै ससारी ॥ ६ ॥ देव आयुतें देव कहाया, परको विभव देख खुनसाया । मरण चिह्न लख अति दुःख दानी, इम चारों गतिभटकै प्राणी ॥ दोहा द्यानत चारों आयुके, तुम नाशक भगवान | अटल शुद्ध अवगाहना, नमों सिद्ध गुणखान ॥ 3 ह्रीं श्री णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठियो आयुकमै विनाशनाय अध्यं० । नामकर्मनाशक सिद्ध जयमाला । दोहा 9 चित्रकार जैसे लिखे, नाना चित्र अनूप । नाम-कर्म तैसे करे, चेतन के बहु रूप ॥ १ ॥ चौपाई | गतिके उदय चहूं गति जानी, जाति पंचइन्द्री सव प्राणी । आनुपूरची गति ले जाई, दो विहाय दो चाल बताई ॥ २ ॥ वन्धन पञ्च पञ्च विधि काया, तन बन्धान पश्च दृढ़ लाया । वन्ध सघन सो पञ्च संघातं अंग उपंग तीन ही गातं ॥३॥ चरण पंचतन रंग वखाने, पांचों ही तन के रस जाने । गन्ध दोय तन मांहि कहे हैं, आठ फरस तन मांहि लहे हैं ॥४॥ पट संठान देह आकारं, हाड छह भेद संहनन धारं । उड़े पड़े न अगुरु लघु काया, स्वास उस्वास नाक सुर गाया ||५|| निज दुःख दे उपघात शरीरं, तन पर घात करें पर पीरं । चन्द्र विजय देह उद्योतं, भानुविंब जिय आतप होत ॥६॥ थावर उठे सुथिर न चले है, त्रस के उदैतै चलै लै है । पस्यापत पूरी जब होई, खिरे बीच अपरयापति सोई ॥७॥ थिरके उदै सुथिर तन गाया, अथिर उदैतैं कंपै काया | तन प्रत्येक जिय एक भनन्तं, साधारण तन जीव अनन्त ॥८॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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