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________________ जैन पूजा पाठ मह गाथा - दुद्धहि जिणवर जो पहवई मुत्ताहलधवलेण । सो संसार न संभवइ मुच्चइ पावमलेण ॥ २०८ अभिषेक मन्त्र मे 'जलेनाभिपिचे' की जगह 'क्षरिणाभिपिचे' पढें । इति दुग्ध कलशाभिषेक' | पीछे 'उदकचन्दनादि' बोल कर अर्ध चढावे । दुग्धान्धिवीचिपय संचितफेनराशिपाण्डुत्वकान्तिमत्रधारयतामतीव । दध्ना गता जिनपतेः प्रतिमा सुधारा, सम्पाद्यतां सपदि वांछित सिद्धये नः । गाथा - दुद्धझडाझड उत्तरइ दडवडदहीपडन्त । भवियह मुच्चइ कलिमलह जिणदिट्ठ उवीसन्त ॥ मन्त्र में 'जलेनाभिपिंचे' की जगह 'दध्ना' पढें । इति दधिकलशाभिषेक । पीछे 'उदकचन्दनादि' बोल कर अर्घ चटाना चाहिये । भक्त्याललाट तट देशनिवेशितोच्चैः, हस्तैश्च्युता सुरवराऽसुरमर्त्यनाथैः । तत्कालपीलितमहेक्षुरसस्य धारा. सद्यः पुनातु जिलविम्वगतैव युष्मान् ॥ मन्त्र में 'जलेनाभिपिंचे' की जगह 'इक्षुरसेनाभिर्पिचे' पढें । पीछे "उदकचन्दन” बोल कर अर्घ चढाना चाहिये । संस्नापितस्य घृतदुग्धदधीक्षुवाहैः सर्वाभिरौषधि - भिरर्हतमुज्ज्वलाभिः । उद्वर्तितस्य विदधाम्यभिषेकमेलाका लेय कुंकुमरसोत्कटवारिपूरैः ॥ गाथा - रसदुद्धदही पाणीय जो जिनवर पहावे । rainल तोडे विकरि अचल सुक्ख पावइ ॥ मन्त्र में 'जलेनाभिषिंचे' को जगह 'सर्वोषधेनाभिषिचे' पढें । इति सर्वोषधिकलशाभिषेक । पीछे 'उदकचन्दनादि' वोल कर अर्घ चढाना ।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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