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________________ जैन पूजा पाठ संग्रह कुन्ददग्धम् । देव ! त्वदीयपदपंकजसत्प्रसादात्, मूदुनि प्रणाममतिशेषकरं दधेऽहं ॥ ६ ॥ अभिषेक करनेवालों को शिर पर मुकुट धारण करना चाहिये । कटकं च सूत्रत्रयकुण्डलानि, केयूरहारगजमुद्रितमुद्रिकां च । प्रालेयपार्ट मुकुटस्वरूपं, स्वस्ति क्रियामेखलकर्णपूर्ण ॥ ७ ॥ २२४ अभिषेक करनेवालों को कुण्डल धारण करना चाहिये । ये सन्ति केचिदिह दिव्यकुलप्रसूता, नागाः प्रभूत वलदर्पयुता विवोधाः । संरक्षणार्थमभृतेन शुभेन तेषां, प्रक्षालयामि पुरतः स्नपनस्य भूमिम् ॥ ८ ॥ ॐ क्ष क्ष क्ष क्ष क्ष इसको पढ कर अभिषेक के लिये भूमि या चौकी का प्रक्षालन करे । क्षीरार्णवस्य पयसां शुचिभिः प्रवाहः, प्रक्षालितं सुरवरैर्यदनेकवारम् । अत्युद्धमुद्यतमहं जिनपादपीठं, प्रक्षालयामि भवसम्भवतापहारि ॥ & ॥ सिंहासन प्रक्षालन करें, जिस पर भगवान विराजते है । श्रीशारदा सुमुख निर्गत बीजवणं, श्रीमंगलीकवर सर्वजनस्य नित्यं । श्रीमत्स्वयंक्षयित तस्य विनाश विघ्नं श्रीकारवर्ण लिखितं जिन भद्रपीठे ॥ १० ॥ यह श्लोक पढ कर सिंहासन पर श्री लिखना चाहिये | इन्द्राग्निदण्डधरनैऋतपाशपाणि, वायुत्तरेशशशि मौलिफणीन्द्रचन्द्राः । आगत्य यूयमिह सानुचराः सचिन्हाः स्वं स्वं प्रतीच्छत बलिं जिनपाभिषेके ॥११॥ 4
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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