SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६ जेन पूजा पाठ सग्रह अरहंत भासियन्यं गणहरदेवेहि गथियं सच । पणमामि भत्तिजुत्तो, मुद्रणाणमहोवयं सिरसा ॥२॥ अन्तर-मात्र-पठ-स्वर-हीन व्यजन-सन्धि-विवर्जित-रेफम् । साधुभिरत्र मम तमितन्यं को न चिमुह्यति शास्त्र-समुद्रेश दशाध्याये परिच्छिन्ने तत्त्वार्थ पटिते सति । फलं स्यादुपवासस्य भापितं मुनिपुगवै ॥ ४॥ तत्त्वार्थसूत्रकतारं गृद्धपिच्छोपलनिनम् । वन्दे गणीन्द्रसजातमुमास्वामिमुनीश्वरम् ॥ ५॥ जं सक्कड नं कोरड जं पुण सक्कड तहेव सहहणं । सहहमाणो जीवो पावड अजरामरं ठाणं ॥al तवयरणं वयधरणं संजमसरणं च जीवव्याकरणम् । अते समाहिमरणं चटविहढुक्खं णिवारेड ॥ ७ ॥ इति तत्त्वार्थसूत्रं समाप्तम्। चौवीम तीर्थकरोंके चिन्ह छप्पय । गऊपुत्र गजराज, बाज बानर मनमोहै । कोक कमल साथिया, सोम सफरीपति सोहै ।। सुरतरु गैड़ा महिप, कोल पुनि सेही जानौं । वज्र हिरन अज मीन, कलश कच्छप उर आनौं । शतपत्र शंख अहिराज हरि ऋपभदेव जिन आदिले । वर्द्धमानली जानिये, चिन्ह चारु चौवीस ये ।।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy