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________________ ६ जेन पूजा पाठ मह गज्जियो सहजहि सख भावन, भवन शब्द सुहावने । विन्तरनिलय पटु पटह वज्जहि, कहत महिमा क्यों बने ।। कम्पित सुरासन अवधिबल, जिन-जनम निहचें जानियो । धनराज तब गजराज मायामयी निरमय आनियो ॥ ५॥ जोजन लाख गयन्द नदन सौ निरमये । वदन वदन वसुदन्त, दन्त सर संठये ॥ सर- सरसौ पनवीस, कमलिनी छाजहीं । कमलिनि कमलिनि, कमल पच्चीस विराजहीं ॥६॥ राजही कमलिनी कमलठोतर सौ मनोहर दल बने । दल दलहि अपछर नटहिं नवरस, हाव भाव सुहावने ॥ मणि कनक किकणि वर विचित्र सु अमरमण्डप सोहये । घन घण्ट चंवर धुजा पताका, देखि त्रिभुवन मोहये ॥ ६ ॥ तिहिं करि हरि चढ़ि आयउ सुर परिवारियो । पुरहि प्रदच्छिण दे त्रय, जिन जयकारियो ॥ गुप्त जाय जिन- जननिहिं, सुखनिद्रा रची । मायामयि शिशु राखि तौ, जिन आन्यो सची ॥७॥ आन्यो सची जिनरूप निरखत, नयन तृपति न हूजिये । तब परम हरषित हृदय हरि ने, सहस लोचन कीजिये ॥ पुनि करि प्रणाम जु प्रथम इन्द्र, उछन धरि प्रभु लीनऊ । ईशान इन्द्र सु चन्द्र छवि, शिर छत्र प्रभु के दीनऊ ॥ ७ ॥ सनतकुमार माहेन्द्र चमर दुई ढारहीं । शेष शक जयकार, शब्द उच्चारहीं ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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