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________________ गा 110 पनर श्री भक्तामर स्तोत्र पूजा ॐ जय जय जय । नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु ॥ अनुष्टुप्। परमज्ञान वाणासि , घाति-कर्म प्रघातिनम् । महा धर्म प्रकार, वन्देऽहमादि नायकम् ।। भक्तामर महास्तोत्रं, मन्त्रपूजां करोम्यहम् । सर्वजीव-हितागारं, आदिदेवं नमाम्यहम् ॥ ॐ ही श्री आदिदेव ! अत्र अवतर अवतर सपौषट् आह्वानन । ॐ ह्रीं श्री आदिदेव ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापन । ॐ ह्रीं श्री आदिदेव । अत्र मम सनिहितो भव भव षषट् सनिधापण । अथाष्टक। सुरसुरी नदसंभृत जीवनैः सकल ताप हरैः सुख कारणः। वृषभनाथ वृषांक समन्वितं शिवकरं प्रयजे हत किल्विषं । । ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय जन्ममृत्युविनाशनाय जल निर्वपामीति स्वाहा ॥ १ ॥ मलय चन्दन मिश्रित कुंकुमेःसुरभितागत षट्पद नंदनैः। वृ० ॐ ही श्री घृषभनाथ जिनेन्द्राय ससारतापविनाशनाय चन्दन निर्वपामीति स्वाहा ॥ २॥ कमल जाति समुद्भवतन्दुलैः परम पावन पञ्च सुपुञ्जकैः। वृ० ॐ हीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ॥ ३ ॥ जलज चंपक जाति सुमालती,वकुलपाडलकुंद सुपुष्पकैः। वृ० । ॐ ही श्री घृषभनाथ जिनेन्द्राय कामवाणषिध्वसनाय पुष्प निर्चपामीति स्वाहा ॥ ४ ॥ 'वटक खज्जक मंडुक पायसैविविध मोदकव्यञ्जनषट्रसैः।वृ० ॐ ह्रीं श्री वृषभनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ॥५॥ 40
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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