SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४ बेन पूजा पाठ - - इसका प्रमाण वह शिलालेस, बतलाता है जेनत एक। प्रारम्भ लेख में यह पसान, सिद्धों को वन्दन अरु प्रणाम ।। स्वस्तिकका चिव विराजमान, जो जन-धर्म का है महान । मधुरापति से उन युद्ध कीन, प्रतिमा आदीश्वर फेर तीन ॥ तालाब, कूप, वापी अनेक, खुदवाई उन कर्तव्य पेस। रानी भी दानी भी विशेप, बनवाई गुफा उनने अनेक।। पुनि और गुफा में लेख जान, पढते जिनमत मानत प्रधान । तहं जसरय नप के पुत्र आय, मुनि मंग पाप सो भी लहाय॥ उप पारह विधि का यह करन्त, वाईम परीपह वह सहन्त । पुनि समिति पञ्च युत चलें सार, छयालीस दोप टल कर अहार ॥ इस विधि तप दुद्धर करत जोय, सो उपजे केवलझान सोय। सब इन्द्र आज अति भक्ति घार, पूजा कीनी आनन्द घार ।। धर्मोपदेश दे भव्य तार, नाना देशन में कर विहार । पुनि आये याही शिखर थान, सो ध्यान योग्य माना महान ॥ भये सिद्ध अनन्ते गुणन ईश, तिनके युग पद पर धरत शीश। तिन सिड्न को पुनि-पुनि प्रणाम, जिन मुख अविचल माना सुधाम।। पन्दत भव दुःख जावे पलाय, सेवक अनुक्रम शिवपद लहाय । पूंजन करता हूँ मैं त्रिकाल, कर जोड़ नमत है "मुभाठाल" ॥ उदयानिरिक्षेत्र अतिसुख देतं, तुरतहि भवदधि पार कर। जो पूजे ध्यावे कर्म नसावे, वांछित पावे मुकि वरं ॥ ही थी खण्डगिरि सिमक्षेत्रेभ्यो जयमाला नियंपामोति स्वाहा । दोहा-श्री खण्डगिरि उदयगिरि, जो प्रजै काल। पुत्र पौत्र सम्पति लहे, पावे शिव सुख हाल॥ इत्याशीर्षाद । । घत्ता ।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy