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________________ जन पूजा पाठ सग्रह तीर्थक्षेत्र पूजा-संग्रह श्री सम्मेदशिखर पूजा दोहा-सिद्धक्षेत्र तीरथ परम, है उत्कृष्ट सुथान । शिखर सम्मेद सदा नम, होय पाप की हान ॥२॥ अगनित मुनि जहत गये, लोक शिखरके तीर । तिनके पद पङ्कज नमू, नाशें भव को पीर ॥२॥ अडिल्ल छन्द। है उज्ज्वल यह क्षेत्र सु अति निरमल सही। परम पुनीत सुठौर महागुण की मही ॥ सकल सिद्ध दातार, महा रमणीक है। बन्दू निज सुख हेत, अचल पद देत है ॥ ३॥ सोरठा। शिखर सम्मेद महान, जग में तीर्थ प्रधान है। महिमा अद्भुत जान, अल्पमती मैं किम कहूं ॥ ४॥ पाल, सुन्दरी छन्द । सरस उन्नत क्षेत्र प्रधान है. अति सु उज्ज्वल तीर्थ महान है। करहिं भक्तिसु जे गुण गायक, लहहि सुर शिवकै सुख जायकै ।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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