SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छेन पूजा पाठ मह हरि चोद देय सो मोद धार, सिर चमर अमर ढारत अपार । गिरिराज जाय तित शिला पांड, ताप धाप्यौ अभिषेक मांड ॥ तित पंचम उदधितनों सुवार, सुरकर कर करि ल्याये उदार । तब इद्र सहस कर करि अनंद, तुम सिर-धारा ढारी सुनंद ॥ जय वव घघघघ धुनि होत घोर, भभभमभभ वध कलश शोर । हम रम व्म कम बाजत मृदंग, झन नननन नननन नू पुरंग ॥ वन नन नन नन नन वनन तान, घन नन नन घटा करत ध्वान | तायेह ह ह ह ह सुचाल, जुत नाचत नावत तुमहिं भाल || चट चट चट अटपट नटन नाट, सट ट ट हट नट शट विराट । इमि नाचत राचत भगत रंग, सुर लेत वहाँ आनंद मग ॥ इत्यादि अतुल मंगल गुठाट, तित बन्यो जहाँ सुरगिरि विराट । पुनि करि नियोग पितु, सदन आय, हरि साँप्यों तुम तित वृद्ध थाय ॥ पुनि राजमाहि लहि चक्र-ग्त, भोग्यौ छ सड करि धरम जत । पुनि तप धरि केवल ऋद्धि पाय, भवि जीवनको शिव- मग चताय ॥ शिवपुर पहुँच तुम हे जिनेश, गुन- मंडित अतुल अनन्त भेष । में ध्यावत हों नित शीश नाय, हमरी भव बाधा हरि जिनाय ॥ सेवक अपनों निज जान जान, करुना करि भौ भय भान भान । यह विघन-मूल-तरु संड संड, चित चिन्तित - आनंद मंड मंड ॥ धत्तानन्द छन्द ( मात्रा ३१ ) ११५ श्रीशांतिमहंता, शिवतियकंता, सुगुनअनंता भगवंता । भवभ्रमन हनंता, सौख्य अनंता दातारं तारनवंता ॥ उन्हीं श्रीशा तिनाथजिनेन्द्राय पूर्णार्थं निर्वपामीति स्वाहा ॥ १ ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy