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________________ पूण राठ ग्रह निर्वाणक्षेत्र पूजा परमपूज्य चौबीस, जिहँ जिहॅ धानक शिव गये । सिद्धभूमि निशदीस, मन वच तन पूजा करों ॥ ॐ हो श्रीचतुर्विगनितीनिर्वाणक्षेत्राणि । त्रवत अवतरन षट् । ॐ ह्रीं श्रीरंगतिनीलवणक्षेत्राणि । ि ॐ ह्रीं श्रीरंगवितो व न्न लिहिन्निव ट गीता छन् । शुचि छीर - दधि-तम नीर निरमल, कनक भारीमें भरौं । संसार पार उतार स्वामी, जोर कर विनती करों ॥ सम्मेदगढ़ गिरनार चम्पा, पावापुरि कैलाशकों । पूजौं सदा चौबीस जिन, निर्वाणभूमि-निवासकों ॥ ॐ श्रीगितिक निर्वाणभ्यो पल निनोति ॥ १ ॥ केशर कपूर सुगन्ध चन्दन. सलिल शीतल विस्तरौ । भव- तापको सन्ताप मेटो, जोर कर विनती करौ ॥ स० ॐ ही श्रीविगवितोयंकर निर्वाणक्षेत्रेभ्यो चन्द्र निर्वपामीति स्वाहा ॥ २ ॥ मोती- लमान अखण्ड तन्दुल, अमल आनन्द धरि तरौं । औगुन हरौ गुण करौ हमको, जोर कर विनती करों । स० ॐ ही श्रीच्तुर्विगतिले निर्वाणक्षेत्रेभ्यो मतान् निपानीति स्वाहा ॥ s n शुभ फूल - रास सुवास - वासित, खेद सब मन की हरौं । }
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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