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________________ पाह ८९ सप्तऋषि का अर्थ जल गन्ध अक्षत पुष्प चरुवर, दीप धूप सु लावना । फल ललित आठों द्रव्य मिश्रित अर्ध कीजे पावना | मन्वादिचारणवद्विधारक, मुनिन की पूजा करूँ । ताकरें पातक हरें सारे, सकळ आनन्द विस्तरूँ ॥ * श्री श्रीमदार व सहाय अयं विपामीति स्वादा ॥ १ ॥ व्रत का अर्थ उदक चन्दन तन्दुल पुष्पकेश्चरुसुदीप सुधूपफलार्धकैः । धवल मंगल गानरवाकुले जिनगृहे जिनवत महंयजे ॥ ॐ श्रीपाद भास निर्वपामीति स्यादा। ममुच्चय अर्ध प्रभुजी अष्ट द्रव्यजु ल्यायो भावसों । प्रभु थांका हर्ष हर्प गुण गाऊँ महाराज ॥ यो मन हग्यो प्रभु की पूजाजी रे कारणे । त्रभुजी थांकी तो पूजा भविजन नित करें ॥ जाका अशुभ कर्म कट जाय महाराज यो मन० ॥ प्रभुजी थांकी तो पूजा भवि जीव जो करें । सो तो मुरग मुकतिपट पात्रे महाराज | यो मन० ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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