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________________ दंद मिटाये ॥ श्रीजिन० ॥ टेक ॥ विकलप गयो प्रगट भयो धीरज अदभुत सुख समता बरसाये । आधि व्याधि अब दीखत नाहीं, धरम कलपतरु आँगन थाये ॥ श्रीजिन० ॥१॥ इतमै इन्द्र चक्रचति इतमैं, इतमैं फनिद खरे सिर नाये । मुनिजनबंद करै थुति हरषत, धनि हम जनमैं पद परसाये ॥ श्रीजिन० ॥ २॥ परमौदारिकमैं परमातम, ज्ञानमई हमको दरसाये । ऐसे ही हममें हम जानें, बुधजन गुन मुख जात न गाये ॥श्री० ३॥ राग-ललित एकताली। बधाई राजै हो आज राजै, बधाई राजै, नाभिरायके द्वार। इन्द्र सची सुर सब मिलि आये, सजि ल्याये गजराजै ॥ बधाई० ॥ ॥ जन्मसदनतें सची ऋषभ ले, सोंपिदये सुरराजै ॥ बधाई० ॥ २॥ आठ सहस सिर कलस जु ढारे, पुनि सिंगार समाजै । ल्याय धखौ मरुदेवी करमैं हरि नाच्यो सुख साजै ॥ बधाई ॥३॥ लच्छन व्यंजन सहित सुभग तन, कंचनदुति रवि लाजै । या छबि बुधजनके उर निशि दिन, तीनज्ञानजुत राजै ॥ बधाई०॥४॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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