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________________ । ३१ ] कर सुखसों रमन्त ॥ट का दिन बड़े भये बैराग भाव, मिथ्यामत रजनीको घटाव ॥ तुम० ॥१॥ धहु फूली फैली सुरुचि वेलि, ज्ञाता जन समता संग केलि ॥ तुम० ॥२॥ द्यानत बानी पिक मधुर रूप, सुर नरपशु आनन्दघनसुरूप ॥ तुम० ॥३॥ (५६) राग मल्हार । जगतमें सम्यक उत्तम भाई टक॥ सम्यक सहित प्रधान नरकमें, धिक शठ सुरगति पाई ॥ जगत•॥१॥ श्रावकब्रत मुनिव्रत जे पालें, ममता बुद्धि अधिकाई । तिनतें अधिक 'असंजम चारी, जिन आतम लब लाई ॥ जगत० ॥२॥ पंच परावर्तन तैं कीनै, बहुत बार दुखदाई । लख चौरासि स्वाँग धरि नाच्यो, ज्ञानकला नहिं आई॥ जगत. ॥३॥ सम्यक विन तिहुं जग दुखदाई, जहँ भाव तहँ जाई । चालत सम्यक आतम अनुभव, सद्गुरु सीख बताई । जगत० ॥४॥ (६०) राग गौड़ी। भाई ! अब मैं ऐला जाना ॥टेक॥ पुद्गल दरव अचेत भिन्न हैं, मेरा चेतन बाना ॥ भाई० ॥१॥ कलप अनन्त सहत
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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