SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ MP. . *जैसी धार पीपाले (मणिया का रास्ता) इथपर. द्यानत विलास (१) राग विहागड़ो। अब हम नेमिजीकी शरन ॥ टेक ॥ और ठौर न मन लगत है. छांडि प्रभुके चरन ॥अब०॥ ॥१॥ सकल भवि-अघ-दहन धारिद, विरद तारन तरन । इन्द चंद फनिंद ध्या, पाय सुख दुखहरन ॥ अब० ॥२॥ भरम-तम-हर-तरनि दीपति, करम गैग खयकरन । गनधरादि सुरादि जाके, गुन सकत नहिं वरन ॥ अब० ॥३॥ जा समान त्रिलोक में हम, सुन्यौ और न करन । दास द्यानत दयानिधि प्रभु, क्यों तजंगे परन ॥४॥ (२) राग सोरठा। गलतानमता कब आवैगा का राग दोष परणति मिट जै है, तब जियरा सुख पावैगा ॥ । गलता० ॥१॥ मैं ही ज्ञाता ज्ञान ज्ञेय मैं, तोनों भेद मिटाबैगा । करता किरिया करमभेद मिटि, एक दरब लौँ लावैगा ॥ गलता० ॥२॥ निह. अ.
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy