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________________ एपच्या जिनवाणी संग्रह। शतिवर्ष इसको आवृत्ति वराबर ही होती रहती है, इतने महत्वपून पन्यके विषयमें सिर्फ इतनाही लिखना काफी है कि इसकी बिक्री और प्रचार देखकर नाय नकाल लोग लोभ शमन नहीं कर सके और मिलता हुमा नाम रखकर जनताको धोखा दे रहे हैं। पाठकोंको चाहिये कि वे जिनदाणी प्रचारक कार्यालय, जिनवाणी प्रसका नाम देखकर ही दर्जनों चित्रोंसे विभूषित सञ्चा जिनवाणी संगह हो खरीदें । पृष्ठ संख्या ८२० के लगभग है, • पक्की सुनहरी जिल्द है। न्योछावर ३) तीन रुपया मात्र । आराधना कक्षा कोष (प्रथम भाग) यह भी बहुत सस्यले मिलता नहीं गा अतएव इसे भी नवीन भाषामें २०० पृष्ठला प्रथम भाग लिखवाकर तैयार कराया है, साथही ८ उत्तमोत्तम हाफटोन चित्र भो दिये गये हैं। न्योछावर १) रुपया मात्र । ... सक्ष व्यसन चरित्र जैन साहित्यमें यह नवीन उगसे ही छपाया गया है, अभीतक जितने यो पुस्तकें निकली है उनमें सर्वोत्तम है। इस तरह तीन रंगे हाफ्टोन चित्र देकर शाल साइजमें, सुन्दर टाइप वार्डर सहित छपाई सफाई साथ ही पुष्ट कागज देखकर भापका मन प्रसन्न हो जायगा। कई हाफटोन चित्र भी दिये हैं जिससे पुस्तककी उपयोगता और भी बढ़ जाती है। सात व्यसनोंका चित्रोंके साथही फल देखकर प्रत्येक प्राणीका मन दर माता है । ऐसी उपयोगी पुस्तक प्रत्येक धर्मात्मा गृहस्थके भरमें रहना पाहिये । न्योछावर १॥) मात्र । __ पड़ा पूजा विधान इसमें प. रामचद, ५० वृन्दावन क्त चौवीसी पाठ कर्मदहन, २५ ल्याणक, शिखर महात्म, पच परमेटो विधान दिये गये हैं, पकी सुनहरी शिका दाम २॥) है।
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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