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________________ ( ह ? ) उठा के० ॥ ३ ॥ कह क विपत कहानी, मेरे प्यारे तुम्ही देखो | जगादो जोती विद्या की भला इसमें समाया है ॥ उठाके ॥ ४ ॥ = ( भजन उपदेशी ) दुनिया मे देखो सैंकडों आये चले गये, सब अपनी करामात दिखाये चले गये ॥ टेक ॥ अर्जुन रहा न भीम, न रावन महावली । इस काल वली, से सभी हारे चले गये | दुनिया में० ॥ १ ॥ क्या निर्धनो गुणवन्त मूर्खो धनवन्त | सब अन्त समय हाथ पसारे चले गये || दुनिया मे देखो० ॥ २ ॥ सर्व जन्त्र मन्त्र रह गये कोई बचा नही । इक वह बचे जो कर्म को मारे चले गये || दुनिया में देखो ० ।। ३ । सम्यक्त धार न्यामत, नहीं दिलमें समझले | पछतायगा जो प्राण तुम्हारे चले गये || दुनिया में देखो ० ॥ ४ ॥ छह ( विनती पं० भूधरदास कृत ) पुलकन्त नयन चकोर पक्षी हसत उर इन्दीवरो, दुर्बुद्धी arat farm नवड़ मिथ्यातम हरो | आनन्द अम्बुज उमंग उदरचो अखिल श्रतम निरदले, जिन י
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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