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________________ ( ७५ ) चलो चोरी करें चलो चोरी करें । ७ ।। (विरोधी) क्या करता तारीफ कैद की, सुनकर दिल थराचे चक्की पीसे बुने बोरिये, मार रात दिन खावे || मत चोरी करो मत चोरी करो० || ८ || (चोर) जो असली है चोर, कैद में नहीं मार वो खाते । करके काम मजे से सारा, मुफ्त रोटियां खाते || चलो चोरी करें चलो चोरी करें ॥ ६ ॥ ( विरोधी ) नही चैन दिन रात कैद में, भरते रहै तवाई | महा कष्ट से प्रारण छोड़कर सहै नरक दुख भाई ॥ मत चोरी करो मत चोरी करो० ॥ १० ॥ (चोर) नरकों के कुछ दुखका भाइयो, मतना करो बिचार । देखे भाले नही किसी ने, यही कहै संसार || चलो चोरी करें० ॥ ११ ॥ शेर (बिरोधी) । नरकों के दुख की कुछ तुम्हें यारो खबर नहीं । दूसरो का वन हरो हो, फिर भी मन में डर नहीं | मारें छेदें चीर फारें नर्क गति में नारकी । याद रक्खो चोर का इसके सिवा कोई घर नहीं ॥ गर तुम्हें मंजूर होवे बहतरी अपनी सदा । मत हरो धन और का इसका समर अच्छा नहीं ॥ ( चलत) जो चोरी से नहीं डरते वो दुख नरकों का भरते,
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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