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________________ ( ५३ ) ५४ ( भजन - शराव निषेध ) राम नाम रस के एवज़ में, शराब का अ है प्याला, पिलादे साक़ी, रहै न वाकी, कुछ बोतल में गुललाला || पी पी शराब बनकर नवाव, गलियों में टक्कर खाते हैं । अड़ंग बड़ंग मुंह से वकते हैं, टेढ़ी चाल दिखाते हैं। नशे का चक्कर जिस दम थाया, नाली में गिर जाते हैं । कम करनेको नशा महरबान, कुत्ते उन्हें न्हलाते है। नंबर बन की मुंह में वरांडी, छोड़ रहा कुत्ता काला । पिलादे साक़ी रहै न वाकी, कुछ वोतल में गुललाला ॥ १ ॥ भंगी और भिस्ती ने जब यह आकर देखा नज्जारा । नाली में से उठ श्री भड़वे, कहां से आया हत्यारा । कौन कहै सोचो न पलंग पै, यह तो उल्लू घर मारा। टांग पकड़ भंगी ने खींची, जोर से एक पंजर मारा । ऐसा केस एक दिन हमने खों देखा भाला । पिलादे साकी रहै न वाकी, कुछ बोतल मे गुल लाला || २ || आते जाते लोग देखकर कहने लगे मयख्वार पड़ा, कोई कहे भले घरोंका नालायक चदकार पड़ा । कोई कहै मोहताज है भूखा, पैसेसे लाचार पड़ा पड़ा । कोई कहै हैजे सेग का ताजा ही वीमार पड़ा । सिविल पुलिस में खबर करादो, पिलादे साकी रहन बाकी 1 7 -
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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