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________________ J 1 ( ४६ ) सट्टेबाज़ - सट्टे की कुछ कहूं हकीकत सुनलो करके कान । एक अंक जो निकले बस फिर होजावे धनवान | जरा सट्टा लगा, जरा सट्टा लगा० ||२| विरोधी- एक अंक की आशा करते, हो जाते कंगाल | जगह जगह पर मारे फिरते, वुरा होय अहवाल | मत सट्टा लगा, मत सट्टा लगा० ||३|| सट्टेबाज-एक दाव जो आजावे वस फिर हो मौज बहार । एक के बदले मिलें कईसौ, क्या अच्छा व्यापार । जरा सट्टा लगा० ॥४॥ विरोधी - सट्टेबाज कोई धनी न होता, देखे सब कंगाल । बुग शौक सट्टे का भाई, कर देता पामाल । मत सट्टा लगा० ॥ ५॥ सट्टेबाज - सट्टे में जो जीत के आवे, पावे ऐश आराम । मज़ा करे परवार जोसारा, क्या अच्छा यह काम | - जरा सट्टा लगा० ||६|| विरोधी - सट्टे के शौकीन जो भाई, ढूंढ साधु फकीर । सौ २ गाली सुनकर आवें, क्या उलटी तकदीर | । मत सट्टा लगा० ॥७॥ सट्टेबाज-साधू सन्त जो गाली देवें, तू क्या जाने यार । सट्टेबाज ही अर्थ निकालें, दिल में सोच विचार । जरा सट्टा लगा० || ||
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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