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________________ ( ४३ ) कीना सारस नीर निहार, सूखा नीर ताल को तज गये उड़ गये पंख पसार। समझ मन स्वारथ० ॥ ४॥ जब तक स्वारथ सधै तभी तक अपना सब परिवार, नातर वात न वझे कोई सब विछड़े संग छार । समझ मन०||| स्वारथ तन जिन गह परमारथ किया जगत उपकार, ज्योती ऐसे अमर देव के गुण चिन्ते हरबार । समझ मन० ॥ ६॥ (दशलक्षण धर्म) , धरम के है दश लक्षण जान ॥टेक।। चमा, मार्दव, और आर्जव, सत्य शौच गुण खान । संजम, तप, और त्याग अकिंचन ब्रह्मचर्य महान । धर्म के हैं दश लक्ष०॥ १ ॥ क्रोध नशाओ, मान मिटाओ, छल छोड़ो बुधवान, झूठ वचन कवहू मत बोलो जांय भले ही प्रान धर्म के दश ॥२॥ त्यागो लोभ करो वश इन्द्रिय निज श्रातम का ध्यान, धन सम्पति दो दया धम्म और जाति देश हित दान । धर्म के० ॥३।। तजो परिग्रह लेश न राखो इच्छा दुख की खान, राखो बल और बीर्य सुरक्षित होय ब्रह्म का ज्ञान । धरम के हैं॥४॥ या से दुख दारिद्र नसे सब हो पापों की हान, जोती-धार धरम दश लक्षण जो चाहै - कल्याण । धम्म के है दश लक्षमा० । ५ ।
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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