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________________ ( ३८ ) ॥ है || टेक || जब तक प्यारे करे कमाई, तब तक सारे कर बड़ाई, चाचा भतीजे सुसर जमाई, कुनवा तावेदार है दिल भरीका दिल भरता है। तू किस पैं प्यार करता है० ॥ १ ॥ जबत शक्ति हीन होजावे, अपनी हाजत कुछ फरमावे यार दोस्त कोई निकट न आवे करत न कोई सतकार है, कमवख्त नाम पड़ता है। तू किस पैं प्यार करता है० ||२|| जिसके प्यार में प्रभू हि विसारा, धम्माधर्म न तनिक विचारा, उस कुनधे ने किया किनारा अव नही कोई गमख्वार हैं, कहि२ के यही मरता है । तू किस पै प्यार करता है ० || ३ || मत वन जान बूझ कर भोला, है खुद गर्ज यार मिबोला यह 'वसुधा' मानुप का चोला फिर मिलना दुश्वार हैं, जप उसे जो दुख हरता है । तू किस पै० ॥ ४ ॥ ४१ ( भजन उपदेशी ) सुनियो भारत के सरदार, म्हारी धीर बंधानेवाले ॥ टेक || देखो इस भारत के वीच किरिया कैसी होगई नीच, बैठे हाथ दान कर खींच लाखों द्रव्य रखाने वाले । सुनि० ॥ १ ॥ भूखों की नहीं सुनते टेर, उनको लालच ने लिया घेर, करते दया धर्म में देर धन को व्यर्थ लुटाने J
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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