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________________ ( १६ ) २२ ( चाल प्रभु तार २ भव० ) आई इन्द्र नार कर कर सिंगार, ठाडीं समुद्र द्वार, शिव देवी माय चरनन मंझार मस्तक धरि दीनों || टेक || 'लखि भजोरीएम, सुत भयोरी नेम, तन प्राकृत यमचल मोर जेम, उर आर्त प्रमोद घर कर कर लीनो | आई इन्द्र० ॥ १ ॥ दृग जोर जिन प्रभु मुख निहार, कर नमस्कार हर गोद धार, पुलकंत गात गज चढ़ दीनों । आई इन्द्रनार० || २ || गिर शीशधार कर नट तवार, नाटिक वियार वलि वलि जुवार, ऐरावत पै भयो हरिय नवीनों | आई० ॥ ३ ॥ २३ (पार्शनाथ स्तुति भुजंग प्रयातछंद - नरेन्द्रं फनेन्द्र सुरेन्द्रं अधीशं शतेन्द्रं सुपूजे भजै नायशीशं, मुनेन्द्रं गनेन्द्रं नमै जोड़ हाथं नमो देव देवं सदा पार्श्वनाथं || १ || गजेन्द्रं मृगेन्द्रं गौ त छुड़ावै, 'महागतें नागतें तू बचावे, महावीर तें युद्ध में तू जितावे । महा रोग ते बंध ते तू खुलावे ||२| दुखी दुख हर्त्ता सुखी सुख कर्त्ता, सदा सेवकों को
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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