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________________ नीचे नरक सरप मुख फाड़त-भक्षा गम लख हंसा हंसा-५ सिर पर काल वली गज गुंजत-कहत सुगुरू हाथ पसा पसा-६ काई तोहि विमान चढ़ाऊँ-पड़त वूद मुख लागी चला-७ भापत नाक चढ़ाय मूढ़ इम-कैले तजू मुख आयो गसा-८ हटी जड़ पाताल पधारे- नर्फ फंड में जाय धंला-९ धिन धिग भूल मूल नम खोयो-सारस में तज फेर फंसा-१० नैनानंद अंध जन दुख को-मानन सुख तन इलो डसा ११ १३७ - रागनी जंगला झंझोटी का जिला । समझ मेरे प्यारे जरा-अब तो समझ मेरे प्यारे जरा हे प्यारे जरो मतवारे जरा - टेकतुम त्रिभवन मैं फिर आए चौगसी में धक्के खाये - १ तेन स्वर्ग विमान सजाए-पशुगति में डल बहु नोए-२ चढ़ तख्त निशान बजाये-पड़े नर्फ शास छिदवाये-३ तूने सपरस सब करलीने-मरु पुद्गल सब चरलीने-४ तृनं दुग्धामृत बहुपोय-पड़ कुगति मूत पीजीयेतूने संघे तर हजारों-पड़ा नर्फ सहा हर बारों-६ ते तोगत व्यवस्था निरस्ती-अपनी गत फ्यं ना परखी-७ तु तो नो प्रीवक लो मारे-या नर्क अनंती वारे-८ किये ऊंच नीच सय काजा-भया पंडित मूरव राजा-९ रह्यो फोन काम तोहि बाकी-तुम आस करतही चाकी-१० तृने जो कुछ करी कमाई-भी भी अपनी कलाई-११ जाए नंग घडंग उघार-गये साली हाथ पसार-१२ पयं पाप करे पर कारण-कर सम्यक दर्शन धारण १३
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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