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________________ [६४ ] (१३३) कहें बार बार सत्तगुरु पुकार-सुनै दयाधार-पट मत को मार फरो दान चार-दोनों भौ में सुख पावो ॥ टेक ॥ यहां हो जश अपार म्हांहो जग उद्धार-टलै, पाप भार-फले पुन्यडार-कुछ ललोलार-खाली हाथों मत जावो ।। १॥ दीजो रोग जान-ओषधि को दान-जामै गुण महान-औगुण जरान-शुभ खान पानदेथकान को मिटावें ॥२॥ मूरख पिछान दीजो विद्यादानजामें पापहानि-संपति की खान-देके स्वर्थज्ञान-परमारथ सिस्नायो ॥३॥ भयवान जान-शक्ति प्रधान-धनजन मकान-पट भाजनानि-देकै दान मान समझायो भ्रम हटावो॥४॥ लगे भूख प्यास-अति होय बाल-नरपशु अताश-आवै संत पामकणमण गिगल-देकै शुद्ध जल प्यावो ॥ ५॥ इल भांति यारदीजो दान चार-औषधि सुधार-विद्याउदार सब भय निवारकै सहार करवायो-कहै दास नैन-आनंद-दैन-बोलो मिश वैनपावै सर्व चैन-सीखो जैन ऐन-जासं सूधे शिवजावो। . ( १३४ ) कब जगें भाग करूं जगत त्याग-होके वीतराग-सेऊ धर्म जाग-कब कर्म नाग-वन आग को वुझाओ ।। टेक ।। जाम भर्म कांस-कुकरम की तांस-पापों की फांल-व्यसनों की धांल-उत्पत्ति नास-से निकांस कव पांऊं ॥ ॥ जो मैं मोग भुड-विषयन के युड-चौबीस कुंड-पच्चीस रुड-कव अग्नि तुड-दुान को भगाऊ जाम धर्म फील-अधरम की ग्रोल-आकाश चील - पुद्गल के टील-भरे काल भील- क्या दलील ह्यांचलाऊं-3-वि कर
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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