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________________ [१९] मानित सपा गया है। जागा तात विजय रथ राजा, नगर पान लिया है||२॥ बापन रतन सुधारस र. मिलनगर टन्द्रि गयो है ॥ ३॥ विधा मात उठी नान संस्तुनि. र प्रभु गांव पसार लिया है ।॥ ४॥ नील कमल गनत, या धाक रानार्थ किया है ॥५॥ गनुग्नदार साल पूण सव. सुग्न दुगइन्द विमार दिया है॥६॥ ३६-गग जगला और गाड़ की टुपरी (श्रीनागनाथ) नेमि पियार ग मा जान म वारी नमि पियाक ढिग मी, जानंदे ॥ टेकी काया नटी माया. छठा सब संसार । उठी जग की कामना मौत, करमी केलख मिटान ॥ १॥ भजन करूंगी जागरगो, भजन जगत मसार। भजन बिना में बहु दुख पाय मग भव बाबा मिट जानटे ॥ २॥ सब जग स्वारथ कामगारो सपना नगा न कोय । अपना साथी धम्म है, मोहि भव सागर तिरजान ॥: मोग विना निरधन दुखारा, तृणाचन धनवान । नाम बिना सब जग दुखियारी, नमी से नेम नहान दे ।। ४ ।। नम किये बढते जन सुरझे, मेरे नमि अधार । दृग सुख गजुलि कहत लखा नान अब मात्र नमि लहाण दे । ५। ४०-गगपरज [श्री पार्श्वनाथ मजि भजि रे मन परम सुधारन, नजि आरस पारन भगवान टे० होय फुधात लगत जिस काचन, वचन सुनत मिटि जाय अज्ञान । पूजत पद वसु कर्म विनाशे, होय त्रिविध संकट अवसान ॥१॥ मंगल होय उदंगल विघटे, प्रग, ऋद्धि लमृद्धि अमान || नागभये धजेन्द्र छिनक में, बढ़ते जीव पाये निर्वान ॥२॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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