SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १७ ] ३३ – गगनी खम्माच की ठुमरी [ श्रीशान्तिनाथ ] हमारी प्रभु शांति से लगन लागी रे, हो विघन गये भजिक प्रभू के पद जजि के, हमारी प्रभु शांति से लगन लागी रे ॥ टेक जीव अजीव सकल दरबनि को, जी बखानी गुण परजै, अनघ धुनि गरजै ॥१॥ सब मापा मय वचन प्रभु के, जी सभी के मन भावें । भरम बिन सावें ॥२॥ वित कारण जग जंतु उभारे जी, नयनसुखदाता, सभी के जग त्राताजी ॥ ३४ - खम्माच की ठुमरी (श्रीकु थुनाथ ) आज आली श्रीमती जननि सुत जायोरी । आज आली । टेक | सोम वंश हथनापुर नगरी, सूरज नृप सुख पायोरी ॥ १ ॥ लख योजन गज सजिकै सुरपति, उत्सव उमगायोरी ॥ २ ॥ पांडुक चन सिंहासन ऊपर, क्षीरो दधि जल न्हायोरी ॥ ३ ॥ कुथु कुथु कहि संस्तुति कोनी, तांडवनृत्य करायोरी ॥ ४ ॥ सखियनमिलिजिन मंगल गाये, मोतियन चौक पुरायोरी ॥ ५ ॥ | सोंपि पिता जननी गयो सुरपति, नैनानंद गुण गायोरी ॥ ६ ॥ ३५ - रागदेश ( श्री अरहनाथ) तुम सुनोरी सुहागन चतुरनार, श्ररहनाथ प्रभुभये वैरागी |टेक | सखि लख चौरासी गयंद तजे, जो कंचन मोतियन माल सजे । तजिघोटक ठाराकोड़ि सखी, अरु छ्यानवै सहस्रत्रिया त्योगी ॥१॥ सखि चौदह रतन विसार दिये, अरु पंच महाव्रत धारि लिये । तजि वस्त्र अभूषण जोग लिये, भये परम धरम से अनुरागी ||२||
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy