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________________ [१४] जाके बचन सुलत भय भागे, हट पडे अघजाले ॥ २ ॥ दस टेखि मेरे नैन सुफल भये, चरण परसि के भाले ॥ ३॥ गुण सुमरत भयो जनम लफल अरु, पुण्य कलपतरजाले ॥४॥ कहत नैनसुख भवसागर से हे प्रभु बेग निकाल ॥ ५ ॥ २६-गग झंझोटी [श्री शीतलनाथ] हे परलिकै मूरति शीतल को मेरा शीतल भयो शरीर ॥ टेक ।। परमानन्द घटा उर छाई, वरले सानन्द नीर ॥१॥ भागी जनम जनम की मेरी भव तृष्णा की पीर ॥ २ ॥ मुद्राशांति निरखि भयभागे, ज्यों घन लगत समीर ॥ ३ ॥ दाल नैनसुख यह वर मांगे, हरो नाथ भव पीर ॥ ४ ॥ २७-रागवरवा [श्री पुष्पदंत गावोरी अलंदबधाई मोरी आली. पुष्पदंत जिन जन्मलियो है। दे, काकन्दीपुर चामादेउर वैजयंत ले आन चयो है ॥ १ ॥ वन्श इक्ष्वाकु सफल किया जाने, कुल सुग्रीव कृतार्थ भयो है ॥ सकल सुरासुर पूजन आये सुरगिरि अभिषेक कियो है ॥ ३ ॥ नैनानन्द धन धन वे प्राणी, जिन प्रभु भक्ति सुधार वुपियो है॥४॥ २८-गगनी झझोटी [श्रीश्रेयांसनाथ] श्रीश्रेयॉसजिनेश्वर ने सखि सकल कर्मदल हरे हरे ॥ टेक ॥ सजिसंयम सन्नाह महाभाट, धीर धरा पग धरे धरे।।। क्षमा ढाल लामभाव खड़ग ले, अष्टकर्म संग अरे अरे ।। १ ।।
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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