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________________ [११] चौबीस तीथं करों के भजन । १८-राग कालङ्गड़ा (श्री ऋषभजनाथ) अबतो सखी दिन नीके आये, आदीश्वर लीनो अवतार ॥टेक॥ सरवारथ सिद्धितें चय आये, मरुदेवी माता उरधार । नाभि नृपति घर बटत बधाई, आज अयोध्यानगर मझार ॥१॥ सुखम दुखम में तीन वरष, अरु शेष रहे वसुमास अवार । अबतो जा जाग मोरी आली, हिल मिल गावे मंगलचार ॥२॥ पुण्य उदयते नर भवपायो, अरु, पायो उत्तम कुलसार । धर्म तीर्थ करता गुरु पायो, अब कटि हैं सब कर्म बिकार ॥ ३ ॥ स्वयंबुद्धः पूरण परमेश्वर, मोक्ष पंथ दर्सावन हार । नयनसुख्य मन वचन कायकरि, नमूं नमूंवसु अङ्ग पसार ॥४॥ १६-रागनी भैरवी (श्रीअजितनाथ) अजित कथा सुनि हर्ष भयोरी ॥ टेक ॥ विजयविमान त्याग के प्रभुजी, जेठ अमावस आनिचयोरी। माघ सुदी दशमी नवमी कू जनम तथा जग त्याग कियोरी ॥१॥ जित रिपु तोत मात विजयादे, नगर अयोध्या दरस दियोरी। जाके चरण चिह्न गजपति को, ढोंच शतक तन तुङ्ग थयोरी ॥२॥ लाख बहत्तर पूरवायू , इन्द्र ने पांच उछाव कियोरी।। पोष शुक्ल एकादशि अवसर, सकल चराचर 'बोध भयोरी ॥३॥ मधुसित पांचे कू शिवपाई, भवि अनन्त उद्धार कियोरी। दृगसुख तीन काल तिहुँजग में, सो जिनवर जैवन्त जयोरी ॥४॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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