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________________ महाचंद जैन भजनावली। [१७ आय पड़त गजखाई ॥ विषय० ॥२॥ रसनाके बसिहोकर मांछल जाल मध्य उलझाई । भ्रमरकमलबिच मृत्यु लहत है विषय नासिका पाई ॥ बिषय० ॥३॥ दीपक लोय जरत नैन बसि मृत्यु पतंग लहाई । काननके बसि सर्प हायके पींजर मांहि रहाई ॥ बिषय० ॥४॥ विषखायेते इक भव माही दुख पावै जीवाई । बिषय जहर खायेतें भव भव दुख पावै अधिकाई ॥विषय० ॥५॥ एक एक इन्द्री” यह दुख सबकी कौन कहाई। यह उपदेश करत है पंडित महाचन्द्र सुखदाई ॥ (२४) भबि तुम छाडि परत्रियाभाई निश्चय बिचारकरा मनमेरे॥ टेर ॥ जप तप संजम नेम आकड़ी ध्यान धरत मुसानन मेरे । परत्रिय संगतसे सब निष्फल ज्यों गज जल डारे तनमरे॥ भवि०॥ १॥ पुज्यपना अरु मानपना फुनि धन्यपनार बड़ापन मेंरे । परत्रिय संगतसे सबनासे गगनमें धनुष पवन थकि तेरे ॥ भवि० ॥२॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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