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________________ बुधजन विलास हिंसा अनुत परतिय चोरी, क्रोधलोभ मद खोय दया दान पूजा संयम कर, बुधजन शिव है तोय ॥ सीख० ॥४॥ (१०३) तेरौ गुण गावत हूं मैं, निजहित मोहि जताय दे। तेरौ० ॥ टेक ॥ शिवपुरकी मोकौं सुधि नाहीं, भूलि अनादि मिटाय दे॥ तेरौ ॥ १ ॥ भ्रमत फिरत हूं भव वनमाही, शिवपुर वाट बताय दे। मोह नींदवश घूमत हूंनित, ज्ञान वधाय जगाय दे ॥ तेरौ०॥२॥कर्म शत्रु भव भव दुख दे हैं, इनतें मोहि छुटाय दे । बुधजन तुम चरना सिर नावै,एती बात बनाय दे। तेरौ० (१०४ ) राग-विहार । मनुवा बावला हो गया॥ मनुवा० ॥ टेक ॥ परवश वसतु जगतकी सारी, निज वश चाहै लाया ॥ मनुवा० ॥१॥ जीरन चीर मिल्या है उदय वश, यो मांगत क्यों नया ॥ मनुवा० ॥२ जो कण बोया प्रथम भूमिमैं, सो कब औरै भ
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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