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________________ ४६ बुधजन विलास ॥ देखो० ॥१॥ मातलखमना सुतको गजपे, लै हरि गिरि पैगया। देखो. '२॥ आठ सहम कलता सिर ढारे, वाजे बजत नया देखो ॥३॥ सौपिदियो पुनि मात गोदमैं, तांडव नृय थया ॥ देखो०॥४॥ सो बानिक लखि बुधजन हरले जै जै पुरमें किया । देखो० ॥४॥ (८३) __मैं देखा अनोखा ज्ञानी वे ॥ मैं ॥ टेक ॥ लारै लागि अानकी भाई, सुध विसरानी वे ॥ में० ॥१॥ जा कारन कुगति मिलत है, सोही निजकर आनी वे ॥ मैं ॥ २॥ झठे सुखके काज सयानें, क्यों पीड़े है पानी वे॥ मैं ॥३॥ दया दान पूजन वन तप कर, बुधजन सीख बखानी वे ॥ मैं ॥४॥ (८३) राग-जंगलो। मेरो मनुवा अति हरषाय, तोरे दरसनसौं॥ मरौ० ॥ टेक ॥शांत छत्री लखि शांत भाव है, श्राकुलता मिट जाय, तोरे दरनसौं मेरो ॥१॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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