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वुधजन विलास
(७५) राग-सोरठ। कर लै हौ जीव, सुकृतका सौदा करलै परमारथ कारज कर लै हो। करि०॥टेका उत्तम कुलकौं पायकैं, जिनमत रतन लहाय । भोग भोगवे कारनैं, क्या शठ देत गमाय ॥ सौदा. १ व्यापारी विनाइयो, नरभर हाट बजार। फल दायक व्यापार करिनातर विपति तयार । सो० ॥२॥ भव अनन्त धातौ फिाया चौरामी वनमाहि। अब नरदेही पाय अघ खोवै क्यों नाहि ॥ सौदा० ॥ ३॥ जिन मुनि प्रागन परख के, पूजौ करिसरधान । कुगुरु केदेव के मान फिायो चतुर्गति थान ॥ सौदा०॥४॥ मोह नींदमां सोवतां डूबा काल अटूट । बुधजन क्यों जागो नहीं, कर्म करत है लूट ॥ सौदा० ॥ ५॥
(७६) राग-सोरठ बेगि सुधि लीज्यो मारी, श्रीजिनराज गि० ॥टे डरपाबत नितप्रायु रहत है, संग लग्या जमराज ॥बेगि ॥१॥ जाके सुरनर नारक