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________________ वुधजन विलास ३६ अँधारौं । ताक हरन करन समकित रवि के - वलज्ञान निहारौ । त्रिभुवन० ॥ २ ॥ त्रिविध शुद्ध भवि इनकों पूजौ, नाना भक्ति उचारौ । कर्म काट बुधजन शिव लै हो, तजि संसार दुखारौ त्रिभु• ॥ ३ ॥ ( ७० ) राग - दीपचन्दी | मेरी अरज कहानी, सुनि केवलज्ञानी ॥ मेरी• ॥ टेक ॥ चेतनके संग जड़ पुद्गत जिमि सारी बुध बौरानी ॥ मेरी० ॥ १ ॥ भव मनमाहीं फेरत माकौं, लख चौरासी थानी । कोल वर - नौं तुम सब जानो, जनम मरन दुखखानी ॥ मेरी• ॥ २ ॥ भाग भले मिले बुधजनको, तुम जिनवर सुखदानी | मोह फांसिका काटि प्रभूजी, कीजे केवलज्ञानी ॥ ३ ॥ ; ( ७१ ) तेरी बुद्धिकहानी, सुनि मूढ़ अज्ञानी | तेरी० ॥ टेक ॥ तनक विषय सुख लालन लाग्यो, नंत काल दुखखानी !! तेरी ॥ जड़ चेतन मि
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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