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________________ X बुधजन विलास लगत पियारा ॥ चन्द || || सुरपति नरपति फनिपति सेवत, मानि महा उत्तम उपगारा । मुनिजन ध्यान धरत उरमाहीं, चिदानंद पदवीका धारा || चन्द० ||१|| चरन शरन बुधजन जे याये, तिन पाया अपना पद सारा । मंगलकारी भवदुखहारी स्वामी अद्भुत उपमावारा॥ चन्द० ॥ २ ॥ राग - अलहिया विलावल ताल धीमा तैताला । I - करम देत दुख जोर हो साईयां || करम• |||| कैइ परावृत पूरन कीनै संग न छोड़त मोर हो साईंयां ॥ करम ||१|| इनके वश मोहि बचावो महिमा सुन प्रति तोर हो साईंयां ॥ करम ||२|| बुधजनकी विनती तुम हीसौं तुमसा प्रभु नहिं और हो साईंयां ॥ करम० ॥३॥ १४ राग - सारंग | तन देख्या अथिर घिनावना ॥ तन । टेक ॥ बाहर चाम चमक दिखलावै, माहीं मैल पावना
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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