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________________ २ वुधजन विलास निहारो ॥ किंकर ॥ टेक ॥ पतितउधारक दीन दयानिधि, सुन्यै तोहि उपगागे । मेरे गुन मति जावो, अपनो सुजस विचारो || किं० | १ | बज्ञानी दीसत हैं तिनमैं, पक्षपात उरकारो । नहीं मिलत महाब्रतधारी, कैसैं है निरवारो ॥ किं० ॥ २ ॥ छबी रावरी नैननि निरखी, आगम सुन्यौ तिहारो | जात नहीं भ्रम क्यों अब मेरो, या दूषनको टारो ॥ किं० ॥ ३ ॥ कोटि बात की बात कहत हूं, यो ही मतलब म्हारो । जोजौं भव तौलों बुधजनको, दीज्ये सरन सहारो ॥ किं० ॥ ४ ॥ ३ तिताला पतितउधारक पतित रटत है, सुनिये रज हमारी हो || पतित• ॥ टेक ॥ तुमसो देव न या जगतमें, जाम करिये पुकारी हो ||१०|| १ || साथ अविद्या लागमनादिकी, रागदोष विस्तारी हो । याही सन्तति करमनिकी, जनममरनदु खकारी हो ॥ प० ॥ मिले जगत जन जो
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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