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________________ चौवीस दंडक - भाषा कवितामे मू० -) संसार दुःख दर्शन — अच्छी भावपूर्ण कवितामें लिखा - है । मू कर्मदहन विधान - कवि चंद्रजी कृत सरल हिन्दी कवितामे यह विधान लिखा गया है। मू० =) पंच परमेष्ठी विधान - यह भी सरल हिन्दीमें पथ रूपमे लिखा गया है । न्यो० =) पंचकल्याणक विधान - कविवर ताराचंदजी कृत यह २८ पृष्ठका विधान है । मू० =) सम्मेद शिखर विधान – कई बार छप चुका है। सू०-) जैनपद भजन दौलत जैनपद संग्रह - मे अध्यात्मिक कविने ऐसे उत्तमोत्तम भजनोंको लिखा है कि उसकी तारीफ करना सूर्यको दीपक दिखाना है | मू० 11) जिनेश्वरपद संग्रह -- इसके कई एडीशन हमारे यहां हो चुके हैं । न्यो० /-) धानतपद संग्रह —— इसमे द्यानतरायजीके उपयोगी पड़ है महाचंद पद संग्रह - यह मारवाड़के अच्छे कवि हुए हैं, उनके भजनोंका संग्रह है । मू० ।) --- इष्ट छत्तीसी - (सार्थ) कई बार छप चुकी है । न्यो० ) आना ।
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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