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________________ या उसक श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार । यह ग्रन्थ पांच वार छप चुका है, इसके सम्बन्धमें कुछ भी लिखना सूर्यको दीपक दिखाना है। प० सदासुखजीने श्रावकोंके लिये यह पथप्रदर्शक ग्रन्थ लिखकर महान उपकार किया है । शास्त्राकार न्यो० ५॥ रुपया पुरुषार्थ सिद्धयुपाय । शास्त्राकार पुरानी और नवीन टीकाओं सहित (स्व० प० टोडरमलजी कृत) छपाया है। न्योछावर ४) रुपया मात्र । ___ तत्वार्थ राजवार्तिक स्त्र० प० पन्नालालजी दूनीवाल कृत पुरानो भाषामें एक खड ही छपा था उसका मूल्य सिर्फ ४) रक्खा है। जैनक्रिया कोष । स्व० प० दौलतरामजीने आचार सम्वन्धी इस गन्थको लिखकर बहुत कुछ स्पष्ट कर दिया है। वही दुवारा छपाया था पर थोड़ी कापी बाको हैं, अतएव जिन्हें दरकार हो शीघ्र ही मगा लें। न्योछावर ३) रुपया। - चरचा समाधान । स्व० पं० भूधरदासजी कृत शास्त्राकार यह छपाया गया है, इसमें तमाम प्रामाणिक ग्रन्थोंके आधारसे सैकड़ों शकाओंका समाधान किया है (गोमट्टसार, राजवार्तिक जैसे गन्योंके आधारसे ) न्यो० २) रु० मात्र । सुकुमाल चरित्र इसका मिलना भी दुष्प्राप्य था, अतएव उसी शास्त्रीय भाषामें जो जयपुर निवासी श्रीमान प० नाथूलालजी दोशीने सकलकीर्ती कृत सस्कृतसे भाषामें लिखी थी प्रगट की है, वास्तवमें सुकमालकी जीवनी पढ़कर आपका हृदय पवित्र हो जायगा, कई उत्तमोत्तम रगीन चित्र भी दिये हैं। मो०१)
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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