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________________ [ ४८ । उदय सुख दुख भोगेतैः राग विरोध न लहिये ॥ ॥ भाई० ॥१॥ कोऊ ज्ञान क्रियातँ कोऊ, शिवमारग बतलावै । नय निहचै विवहार साधिके, दोऊ चित्त रिझावै ॥ भाई० ॥२॥ कोई कहै जीव छिनभँगुर, कोई नित्य बखानै । परजय दर बित नय परमाने, दोऊ समता आने ॥ भाई० ॥३॥ कोई कहै उदय है सोई, कोई उद्यम बोलै । द्यानत स्यादवाद सुतुलामें, दोनों वस्तँ तोले ॥ भाई० ॥४॥ (६०) राग आसाबरी भाई ! कौन धरम हम पालैं ॥ टेक॥ एक कहैं जिहि कुलमें आये ठाकुरको कुल गालैं॥ भाई ॥१॥ शिवमत बौध सु वेद नयायक, मीमांसक अरु जैना। आप सराहैं आगम गाहैं, काकी सरधा ऐना ॥ भाई० ॥२॥ परमेसुरपै हो आया हो, ताकी वात सुनी जै। पूछ बहुत न बोलैं कोई बड़ी फिकर क्या कीजै ॥ भाई ॥३॥ जिन सब मतके मत संचय करि, मारग एक बताया । द्यानत सो गुरु पूरा पाया भाग हमारा आया ॥४॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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