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________________ ( ७१ ) की, इस बात से क्रोधित होकर वाहमुनि ने अशुभतैजस से समस्त नगर को, राजा को मन्त्री को और अपने को भी भस्म किया। राजा मन्त्री और आप सप्तम नरक के गौरव नामा बिलमें नारकी हुवा द्रव्यलिङ्ग से वाहुनामामुनि भी कुर्गात कोही प्राप्त भये । इससे भो मुन भाव लिङ्ग को धारण करो । अवरोविदव्व सवणो दंसण वर णाण चरणपभट्टो | दीवाणुत्ति णामो अनंत संसारिओ जाओ ||२०|| अपरोपि द्रव्यश्रमण दर्शन वरज्ञान चरण प्रभृष्टः । दीपायन इति नामा अनन्तसंसारिको जातः ॥ अर्थ - वाहुमुनि के समान और भी द्रव्य लिङ्गी मुनि हुवे हैं तिन में एक दीपायन नामा द्रव्यलिङ्गी मुनि दर्शन ज्ञान चारित्र से भ्रष्ट होता हुवा अनन्त संमारी ही रहा । केवल ज्ञानी श्रनिमिनाथ स्वामी मे वलभद्र ने प्रश्न किया कि स्वामिन् ? इस समुद्रवर्तिनी द्वारिका की अवस्थिति कब तक है । भगवान् ने कहा कि रोहणी का भाई तुमारा मातुल द्वीपायन कुमार द्वादशमं वर्ष में मदिरा पीने वालों से काधित होकर इस नगर को भम्म करेगा, ऐसा सुनकर द्वीपायन जिनदीक्षा लेकर पूर्वदशों में चलागया, और वहां तप कर द्वादश वर्ष पूर्ण करना प्रारम्भ किया, वलभद्र ने द्वारिका जाय मद्य निषेध की घोषणा दिवाई और मदिरा तथा मंदिरा के पात्र मदिरा बनाने की सामिग्री सर्व ही नगर बाहर फिंकवादी । वह द्वीपायन १२ वर्ष व्यतीत हुवे जान और जिनेन्द्र वाक्य अन्यथा होगया ऐसा निश्चय कर द्वारिका आय नगर वाहिर पर्वत के निकट आतापन यांगधर तिष्टा, इसी समय शम्भु कुमार आदि अनेक राजकुमार बन क्रीड़ा करते थे तृषातुर होय उन जलाशयों का जल पीया जिन में फेंकी हुई वह मदिरा पुरानी होकर अधिक नशीली होगई थी उसके निमित्त मे सर्वही उन्मत होकर इधर उधर भागने लगे, और द्वीपायन को देख कहते भये कि यह द्वारिका को भस्म करने वाला द्वीपायन है इसे मारो निकाला और पत्थर मारने लग जिन से घायल होकर द्वीपायन भूमि पर गिरा और क्रोधित होकर द्वारिका को भस्म किया ।
SR No.010453
Book TitleShat Pahuda Grantha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
PublisherJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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